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तुम्हें खत लिखा

एक सप्ताह बाद मिसेज मेहरा की लड़की नीता की शादी थी। मैं एक सप्ताह से अपने लिए साड़ी औऱ मैचिंग जू़लरी अरेंज कर रही थी।  औरतें इस मामले में बदनाम है कि उन्हें कहीं जाने के लिए तैयार होने में बहुत वक्त लगता है यही हाल मेरे साथ भी था । मैं चाहे जितनी भी तैयारी कर लेती थी लेकिन समय पर  कोई न कोई सामान ढूंढना ही पड़ता था । अतः इस बार मैं पहले से ही सतर्क थी साड़ी तो मैंने तैयार करा लिया था। अब उससे मैच करते हुए ज्वेलरी के लिए मैंने अपनी अलमारी के लॉकर को खोला और कुछ ज्वेलरी देखने लगी उसी समय मेरे हाथ में एक सुनार के दुकान का छोटा पर्स हाथ लगा उसे खोलकर देखा , इसमें एक पेपर था।
मुझे लगा कि यह किसी ज्वेलरी का बिल होगा मैंने उस पेपर को खोला अरे यह तो मेरा लिखा हुआ पत्र था जो मैंने कभी रवि को लिखा था । पत्र को हाथ मे लेकर मैं अतीत की स्मृतियों में खो गई।

रवि मेरे घर में किराएदार था। शुरू में तो काफी दिनों तक मैंने उसको देखा भी नहीं था क्योंकि मेरे पिताजी को  लड़कियों का ज्यादा इधर-उधर आना जाना और लड़कों से बातचीत करना पसंद नहीं था । मुझे बहुत दिनों बाद मेरी पड़ोस की दोस्त ने बताया कि तेरा किराएदार बहुत हैंडसम है । मैंने उसकी बातों को अनसुना कर दिया एक दिन  कॉलेज में मेरे सामने एक लड़का आया। उसने कहा कि ""आप मिस्टर दिनेश मेहता की बेटी हैं " तो मैंने उसे हां में जवाब दिया।

मैने उससे पूछा कि "आप मेरे पापा को कैसे जानते हैं "। इस पर उसने जवाब दिया कि  " मैं आपके घर में किराए पर रहता हूं। आपको मैंने एक दिन खिड़की से देखा था आप  अपने मम्मी पापा के साथ  कहीं जा रहीे थीं । उसने मुझे बताया कि वह इस कॉलेज में बी एस सी. लास्ट ईयर का स्टूडेंट है ।

मैं भी उस समय बी. ए लास्ट ईयर में थी। हमारे बीच कुछ बातें हुईं और वह वहां से चला गया। लेकिन वह इतना आकर्षक था कि उसके जाने के बाद मैं उसी के बारे में सोचती  रही।
मेरा छोटा भाई कभी-कभी उसके पास जाता था। वह एक दिन आकर कहने लगा कि" रवि भैया के घर से पैसा नहीं आया है इसलिए उनको थोड़ी परेशानी हो रही है और वह इस महीने का किराया थोड़ी देर से देंगे"।

पापा ने इस बात पर कोई ध्यान नहीं दिया लेकिन मुझे लगा कि उसके पास पैसे नहीं होंगे तो और चीजों की भी दिक्कत हो रही होगी इसलिए मैंने चुपके से अपने भाई को कुछ पैसे उसको देने के लिए दिए। मेरा भाई उसको पैसे देकर आ गया और उसके हाथ में एक कागज था । भाई ने कहा" रवि भैया ने आपको देने के लिए कहा है"।

मैंने पढ़ा--   उसने मुझे पैसे देने के लिए थैंक्स बोला था और लास्ट में लिखा था कि मैं आपसे बहुत प्यार करता हूं। मुझे तो मानो पंख लग गए और आसमान में उड़ने लगी कि इतना हैंडसम लड़का मुझे पसंद करने लगा है लेकिन पिताजी के डर के मारे मैं उससे घर में बात नहीं कर सकती थी। अतः मैंने भाई को एक छोटे से कागज पर लिख दे दिया कि कल कॉलेज में मिलना।  क्योंकि हमारे जमाने में मोबाइल फोन नहीं थे। वह दूसरे दिन कॉलेज में आया। शर्माते हुए मेरे पास आकर खड़ा हो गया मैंने भी उसे थोड़ी बहुत बातें की। इस तरह हमारी मुलाकाते शुरू हो गई। घर में तो हम एक दूसरे को बिल्कुल अनजान शो करते थे  कभी-कभी मेरा भाई उसका पत्र लेकर आता था और मैं भी  भाई को चुपके से  पत्र लिख कर देती थी ।हम दोनों कॉलेज में मिलते थे । घर में मेरी शादी की बात भी चलने लगी थी मैंने सोचा था कि मैं हिम्मत करके भाभी को बताऊंगी और वह लोग पिताजी को राजी कर लेंगे क्योंकि यह लड़का हमारी जाति बिरादरी का ही था। पिताजी को ज्यादा आपत्ति नहीं होनी चाहिए थी। एक दिन मेरी दोनों भाभियां  आपस में बात कर थीं कि " रवि की मिसेज का लेटर आया है"। लेटर हमारे पते पर ही आता था इसलिए रवि की गैर हाजिरी में पोस्टमैन ने भाभी को लेटर दिया था। मैं सकते में थी।  मैंने कुछ नहीं बोला मैंने  मैंने एक पत्र लिखा उसे देने के लिए लेकिन  उसी समय पिताजी आ गए और वह पत्र दे नहीं पाई , क्योंकि भाई भी उस समय घर में नहीं था उस पत्र को उठाकर मैंने इस  पर्स में रख दिया।  उस समय हमारे एग्जाम चल रहे थे ।  मैंने सारी बातों को भुला कर  एग्जाम मे अपना ध्यान लगा दिया । वह भी इन दिनों मुझसे नहीं मिला। पेपर खत्म होने के बाद   वो मुझसे कॉलेज में मिला । मैंने उससे उस लेटर के बारे में पूछा जिसके बारे में  मेरी भाभी लोग  बातें कर रही थी ।
उसने कहा " उसकी शादी बचपन मे हो चुकी है ।
मैंने कहा कि "तुम इस शादी को मानते हो?
वह कहने लगा कि नहीं  मानता  लेकिन मैं अपने घर वालों के विरुद्ध भी नहीं जा सकता। मैं तुमसे कोर्ट मैरिज कर लूंगा । तुम यहां शहर में रहना और वो मेरी पहली बीवी गांव में रहेगी ।मैंने उसको बोला कि ऐसा नहीं हो सकता मैं तुम्हारे साथ विवाह नहीं करूंगी । आज से मेरे और तुम्हारे रास्ते अलग-अलग हैं।  इस पर उसने मेरा हाथ पकड़ लिया   मुझे उसका स्पर्श बिल्कुल अच्छा नहीं लगा। उस स्पर्श में प्यार नहीं वासना की बू आ रही थी। मैंने झटके से हाथ छुड़ाया और वापस चली आई। इसके बाद मेंने कभी उससे मिलने की कोशिश नहीं की। और उसके पत्र को फाड़कर कचरे के डिब्बे में डाल दिया।
लेकिन  सुनार के पर्स  में यह मेरा छुपाया पत्र  पड़ा रह गया था । रवि को भूलने में मुझे थोड़ा समय तो लगा था। अपने वैवाहिक जीवन में मिली खुशियों के को समेटने में मैंने अपने अतीत को भुला दिया था लेकिन आज इस पत्र को देखकर उसकी धुंधली सी यादें आ गई ।
कभी-कभी हमें कोई आकर्षक चीज इतनी अच्छी लगती है कि हम उसके हकीकत के बारे में जाने बिना ही उसको पाने की कोशिश करते हैं जबकि वास्तविकता इससे परे होती है।
आज मैं अपने वैवाहिक जीवन में बहुत खुश हूं। मुझे  इस बात का कोई अफसोस नहीं है कि  रवि जैसा इंसान  आज मेरा  जीवनसाथी  नहीं है  मैंने पत्र को फाड़ कर  कचरे के डिब्बे में डाल दिया और अतीत की स्मृतियों से हमेशा के लिए बाहर आ गई ।  मैंने  अपने लिए  ज्वेलरी ढूंढना  शुरू किया । मुझे अपनी साड़ी से मैचिंग एक सुन्दर नेकलेस का सेट मिल गया था।


स्नेहलता पाण्डेय 'स्नेह'

प्रतियोगिता के 

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9 Comments

Seema Priyadarshini sahay

03-Dec-2021 01:49 AM

बहुत सुंदर कथा

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Niraj Pandey

03-Dec-2021 12:31 AM

बहुत ही शानदार शब्दो से सजी हुई कहानी बहुत खूब👌

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🤫

03-Dec-2021 12:20 AM

काम शब्दो में गहरी बात कह दी आपने...

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